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हाई ब्लड-प्रेशर (उच्च रक्तचाप)

उच्च रक्तचाप के लक्षण-
          वर्तमान परिवेश में विभिन्न कारणों से 
तनावग्रस्त जीवनशैली के चलते प्रायः 40 के आसपास की 
उम्र तक पहुँचते-पहुँचते कई लोग 
इस समस्या की गिरफ्त में आ जाते हैं । 
इस बीमारी में जहाँ रोगी के रक्त का दबाव 
140/80 से अधिक हो जाता है वहीं रोगी का सिर चकराने लगता है । 
आँखों के आगे अंधेरा छाने लगता है 
और रोगी घबराहट महसूस करता है । 
कई बार सिरदर्द से बैचेनी बढती जाती है, नींद गायब सी हो जाती है 
और कभी-कभी कानों में तरह-तरह की अनावश्यक सी आवाजें सुनाई देती हैं । 
उच्च रक्तचाप की चिकित्सा में यदि लापरवाही की जावे तो 
वृक्क (गुर्दों) को विशेष हानि पहुँच सकती है । 
इससे बचाव के लिये निम्न उपाय जो प्रभावित रोगियों द्वारा 
किये जा सकते है, उनका विवरण निम्नानुसार प्रस्तुत है-
                  

दिल का दौरा महसूस होते ही रोगी यदि लहसुन की चार कलियां तुरन्त चबा ले तो 
 हार्टफैल की स्थिति को भी इस तरीके से रोका जा सकता है । 
दौरा समाप्त होने के बाद नित्य कुछ दिन तक लहसुन की
 दो कलियां दूध में उबालकर लेते रहें । 
नंगे पैर चलने वालों को रक्तचाप की शिकायत प्रायः नहीं होती ।

          आंवला ताजा या सूखा आयुपर्यंत खाते रहने से 
अचानक हृदयगति रुकने की संभावना नहीं रहती
 और न ही उच्च रक्तचाप का रोग सम्बन्धित व्यक्ति को हो पाता है । 
रोगी व्यक्त को सुबह-शाम आंवले का मुरब्बा 
(एक-एक आंवले के रुप में) खाते रहना चाहिये । 
यदि किसी को मधुमेह (शुगर) की शिकायत हो तो 
उसे यह आंवला धोकर खाते रहना चाहिये ।

           उच्च रक्तचाप में त्रिफला चूर्ण के सेवन से भी 
पर्याप्त लाभ मिलता है । 
 हरड, बहेडा व आंवला के समान अनुपात में मिश्रीत चूर्ण की 
10 ग्राम के करीब मात्रा को रात्रि में एक गिलास जल में डालकर रख दें 
व सुबह उस चूर्ण को मसलकर व छानकर उसमें थोडी मिश्री मिलाकर 
पीते रहने से उच्च रक्तचाप नियंत्रण में रहता है । 
त्रिफला का ये मिश्रण कब्ज भी दूर करता है जिससे उच्च रक्तचाप के रोगी को विशेष लाभ मिलता है ।

          अत्यधिक बढे हुए रक्तचाप के रोगियों को यदि 
आक के फूलों की माला पहनाई जावे तो रक्तचाप नियंत्रण के लिये विशेष उपयोगी मानी जाती है 
इसके अतिरिक्त ऐसे रोगियों को पंचमुखी रुद्राक्ष की माला भी स्थाई रुप से पहनाई जा सकती है ।

सहायक उपचार...
          20 ग्राम प्याज के रस में 

करीब 10 ग्राम शहद मिलाकर प्रतिदिन पीने से 
उच्च रक्तचाप के रोगियों को बहुत लाभ मिलता है ।

           सर्पगंधा वनौषधि की जड के चूर्ण को प्रतिदिन 2 ग्राम मात्रा में 
दूध या जल के साथ सेवन करने से उच्च रक्तचाप कम होता है । 
अनिद्रा की समस्या दूर होकर रोगी को गहरी नींद भी आती है । 
यदि इसमें 1 रत्ती (=120 मिलीग्राम) शुद्ध शिलाजीत भी मिलाकर 
इसे दूध के साथ लिया जा सके तो रोगी को इससे विशेष लाभ होता है ।
 
          मैथीदाने का चूर्ण सुबह-शाम 3-3 ग्राम की मात्रा 

(चाय का 1 चम्मच = 5 ग्राम) में जल के साथ लेते रहने से 
उच्च रक्तचाप शांत होता है ।
 
          आंवला, सर्पगंधा व गिलोय का चूर्ण सममात्रा में बनाकर 

प्रतिदिन 3-3 ग्राम मात्रा में जल के साथ लेते रहने से उच्च रक्तचाप नियंत्रित रहता है ।
 
          अशोक के वृक्ष की छाल 20 ग्राम मात्रा में लेकर 

व उसे अधकूट कर उसका काढा बनाकर
 (दो गिलास पानी में इसे डालकर आंच पर इतना उबालें कि 
पानी की यह मात्रा आधा गिलास रह जावे) पश्चात् इसे छानकर 
व थोडी सी मिश्री मिलाकर  कुछ दिन पीने से भी उच्च रक्तचाप दूर हो सकता है ।

कुछ मौसमी उपाय भी...
          प्रतिदिन मूली को काटकर व उसमें नींबू का रस मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता है । 

मूली में नमक न मिलावें ।

          गाजर का 200 ग्राम रस प्रतिदिन पीते रहने से रोगी को लाभ मिलता है ।

 इससे उसकी घबराहट व बैचेनी भी दूर होती है । 
यदि गाजर के इस रस में 10 ग्राम शुद्ध शहद भी मिला लिया जावे तो
 इसके गुणों में विशेष वृद्धि हो जाती है ।

          अंगूर का सेवन भी रक्तचाप नियंत्रण में मददगार साबित होता है । 

          आलू का सेवन जहाँ कुछ चिकित्सक इस रोग में रोक देते हैं 

वहीं कुछ की धारणा के मुताबिक जल में नमक डालकर उबले हुए आलू का सेवन रोगी कर सकते हैं । 
अलबत्ता इसमें अलग से नमक न मिलावें ।
  
          उपरोक्त प्रस्तुत उपायों में रोगी की तासीर के अनुकूल 
व मौसम के मुताबिक उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करते हुए 
आप अपने परिजनों सहित स्वयं को न सिर्फ इस रोग से मुक्त रख सकते हैं 
बल्कि पहले से रोग रहने की स्थिति में अनुकूलता के मुताबिक 
रोगी का यथासम्भव सुरक्षित रुप से उपचार कर 
स्थिति को अनियंत्रित होने से रोक सकते हैं । इसके अतिरिक्त...

          उच्च रक्तचाप के सभी रोगियों को प्रतिदिन 

सूर्योदय के समय भ्रमण के लिये किसी पार्क में जाकर एक घंटे शुद्ध वायु के वातावरण में 
प्रतिदिन बैठने व इसी अवधि में ओस पडी हरी घास पर
 कुछ समय नंगे पैर नियमित चलने से पर्याप्त लाभ मिलता है ।



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